Monday, November 27, 2017

एक नज़र इधर भी

कभी देख लो एक नज़र इधर भी
की रौशनी का इंतज़ार इधर भी हैं
मुस्कुरा के कह दो  बातें चार
की कोई बेक़रार इधर भी हैं ||

समय  बदलता रहता हैं हरदम 
पर हर चीज़ समय के साथ बदलती नहीं
परे होती हैं दुनिया के बंदिशों से कुछ चीज़े
हर चीज़ ज़माने के साथ चलती नहीं ||

वो जो तुम्हारे सीने में दफ़न हैं
और मेरे दिल में छुपा रहता हैं
वो अहसास में आग भले न हो
पर खुरचने में इसकी गर्माइश
आज भी कायम हैं
भले ही वो इफ्तकार आज हो न हो ||











1 comment:

  1. गज़ब दिल पाया है आपने...अहसासों को महसूस करना...फिर शब्दों में ढालना...कमाल है...

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नक़ाब