Thursday, April 18, 2013

सुकून ...


Sukun on my voice on youtube:

http://youtu.be/TZSV1CnoRkY


रात की मिट्टी को
उठा कर 
हाथ से रगड़ रहा था , की शायद 
उनकी तन्हाई की आदत 
हमे भी लग जाये । 

पर बेवफा वो,  शहर की मिटटी 
उनको अकेले रहने की आदत नहीं थी 
रात भर दौड़ते अंधेरो के साथ 
उनको भी भीड़ की चाहत जो लग गयी थी 

मैं क्या करता , उठा वहाँ से 
चल पड़ा कही और, सुकून की तलाश में 
रास्तो के सीने में बने "divider"
उसपे खड़े स्तम्भ पे 
लाल  , पिली बातिया 
वेबजह ही रंग बदल रही थी 
शायद , उन्हें भी शहर की आदत जो लग गयी थी ॥ 

वही रास्तो के किनारों पे 
कुछ लाश जैसे दिखते शरीर 
चैन से सो रहे थे 
दो चार गुजरती गाडियों में 
उधर ही 
कुछ रात के मुसाफिर 
बेचैन दिख रहे थे ॥ 

मैं भी वही पास 
बैठ कर, सोचा की यही लेट जाऊ 
उनकी फटी कम्बल से उधार ले कर  
मुझे भी कुछ नीद हासिल हो जाए 
पर आँख बंद करते ही रूह  काँपी 
की कही ये रात के मुसफ़िर 
फिर खफा न हो जाएँ ,
और उनकी गाडी के नीचे मेरा सुकून न आ गए 

मैं चल पड़ा फिर कोई और जगह की तलाश में 
की सुकून शायद आज मुझे हासिल न था 
ये शहर हँस रहा था मुझपे 
जैसे की मैं उसके काबिल न था ॥ 

नक़ाब