Wednesday, August 17, 2011

आजाद हो ||

हाथ में नहीं तो
दिल में मशाल जलाये रखना है
देख नहीं सकते, गद्दारों को लुटते अपने वतन को
हर आँख को अब हमे, जगाये रखना है
__
जब तक आवाज है सीने में
आजाद हो

जब तक डर नहीं है जीने में
आजाद हो ...

देख कर बेगुनाहों पे सितम
कुछ होता है अगर
तो आजाद हो ...

है अगर गद्दारों से
लोहा लेने का जिगर
तो आजाद हो ...

कर लो खुद से वादा
आजाद ही रहना है , जिंदा हूँ जब तक
बेड़िया न डाले कोई , जिन्दा हूँ अब तक
करते रहोगे जब तक ज़द्दो ज़हद
तो आजाद हो ,
.............................

4 comments:

  1. Anonymous6:49 AM

    समसामयिक, सार्थक और सच्चा उदघोष

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  2. Brilliant post..
    Thoughtful and with strong emotions !!

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  3. है अगर गद्दारों से लोहा लेने का ज़िगर।
    बहुत अच्छी पंक्ति एवं रचना।

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