Sunday, May 30, 2010

अर्थ प्यार का

तेरे तन्हइयो के गम में
हम बार बार मरते रहे
हर सास बोझ लगती थी हमे
इसलिए दिल के बोझ , बढते रहें||
...
उठाया नहीं गया एक दिन
ये बोझ मुझपे भारी से  हो गए
ज़ला डाला दिल को, टुकडो में काट कर
आंशुओ के सैलाब में , ये कतरा कतरा बह गए ||
......
दिल जो ना रहा, मन ,खाली सा हो गया
चिराग बुझ गए तो , मैं सवाली सा हो गया
कम से कम जुड़े थे, तेरे तन्हइयो की यादो से
अब  तो बेदिल मैं , भिखारी सा हो गया ||
....
भटका कहाँ  कहाँ  , मैं खुशियों की दौड़ में
गया जहाँ  भी, दिलजले मिले
खुदा से मांगी मोहलत , मोहब्बत के नाम पे
की आधी ज़िन्दगी तो मैंने , कतरों में काट दी ||
......
दिखा आइना मुझे , उपरवाला भी हस पड़ा
दी तुम्हे चाहत का तोफा , तुमने क्या समझ लिया
रख लेते उसे एक कोने में , कहाँ पूरा दिल चाहिए था
ऐसी अनमोल यादो के , तुमने कतरों में बदल दिया||
.....
आपने नादानी पे , हम खुद ही  हस पड़े
एक हीरा था मेरे पास , ना समझ सके
कद्रदान था खुदा , मुझपे फिर इंनायत हुई
इसबार हम प्यार को , कतरा ना होने देंगे
तन्हाई , दूरिया , दर्द या खुशी मिले जो भी
हम फिर से इन्हें, खुदा कसम , बोझ ना कहेंगे |

2 comments:

  1. Anonymous9:14 PM

    "तेरे तन्हयियो के गम में
    हम बार बार मरते रहें
    हर सास बोझ लगती थी हमे
    इसलिए दिल के बोझ, बढते रहें||"
    टाइपिंग की गलतियों को सुधार लें तो बेहतर होगा

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